वार्ताली देवी साधना
@@ माँ श्री वार्ताली देवी त्रिकाल दिव्य दृष्टी, त्रिकाल ज्ञान,त्रिलोक वार्तालाप, घटनाये मन्त्र साधना@@
यह साधना 21 दिन की है।16 मालाये रोज जप करना होता है।लालवस्त्र धारण करे।यह अति प्राचीन दुर्लभ साधना विधान है। इस साधना को तलाश करने में लगभग 8 वर्ष लग गए थे तब जाकर इसका पूर्ण विधान यंत्र सहित प्राप्त हुआ।
इस साधना में मन्त्र तंत्र यन्त्र तीनो का उपयोग होता है।
जब साधक को इस देवी मन्त्र की सिद्धि हो जाती है तब साधक को देवी दर्शन देती है और एक दिव्य प्रकाश पुंज अर्थात बिन्दु के रूप में साधक के ह्रदय में समाहित हो जाती है।उसके बाद साधक का शरीर कम्पन्न करने लगता है और तभी से साधक त्रिलोक ज्ञाता हो जाता है।त्रिकाल दर्शी हो जाता है।कोई भी प्राणी जब साधक के सामने जाता है तो साधक देखकर ही उसका भूत,भविष्य,वर्तमान बता देता है।
इस देवी शक्ति से वार्ता होती है और इसका सीधा सम्बन्ध कुण्डलिनी शक्ति से होता है।
इसका कार्य भी कर्ण मतंगणि, कर्ण पिशाचिनी की तरह होता है।
यह साधना अघोर पद्धति में,शाबर पद्धति में भी होती है किंतु वेदोक्त विधि सर्वेश्रेष्ठ है।यहाँ वेदोक्त पद्धति का वर्णन किया है।
सबसे पहले यंत्र को भोजपत्र पर अनार की कलम से और गोरोचन की स्याही से बनाकर उसका पंचोपचार पूजन करे।चोकी पर चारो कोनो पर तेल के दिए जलाये।एक देशी घी का बड़ा चिराग अखण्ड मध्य में जलाये।लाल गुलाब के पुष्पो से पूजन करे ,धूपबत्ती जलाये।
(अखण्ड दीपक जलाने के लिए सुबह नहा धोकर भगवान् सूर्य देव को साक्षी मानकर धूप में दिए को जलाये।)
गुरु पूजन,वास्तु पूजन,पवित्रीकरण का साधन करे।
दिशा उत्तर,वस्त्र लाल,आसन लाल,तिलक लाल चन्दन का,माला लाल मूंगा या रुद्राक्ष,जप दाहिनी हाथ की मध्यमा और अंगूठे के अग्र भाग से।
साधना सिद्ध होने पर साधक किसी भी लोक में घट रही घटना को दूरदर्शन की भांति चलचित्र की तरह देख सकता है।
दाहिनी ओर ताम्र जल कलश स्थापित करे।
यह साधना किसी भी पूर्णिमा को शुरू की जा सकती है।
मन्त्र ॐ ऐम ह्रीम पंचकारस्य स्वाहा।
पं मुदित मिश्रा
+919811696036
यह साधना 21 दिन की है।16 मालाये रोज जप करना होता है।लालवस्त्र धारण करे।यह अति प्राचीन दुर्लभ साधना विधान है। इस साधना को तलाश करने में लगभग 8 वर्ष लग गए थे तब जाकर इसका पूर्ण विधान यंत्र सहित प्राप्त हुआ।
इस साधना में मन्त्र तंत्र यन्त्र तीनो का उपयोग होता है।
जब साधक को इस देवी मन्त्र की सिद्धि हो जाती है तब साधक को देवी दर्शन देती है और एक दिव्य प्रकाश पुंज अर्थात बिन्दु के रूप में साधक के ह्रदय में समाहित हो जाती है।उसके बाद साधक का शरीर कम्पन्न करने लगता है और तभी से साधक त्रिलोक ज्ञाता हो जाता है।त्रिकाल दर्शी हो जाता है।कोई भी प्राणी जब साधक के सामने जाता है तो साधक देखकर ही उसका भूत,भविष्य,वर्तमान बता देता है।
इस देवी शक्ति से वार्ता होती है और इसका सीधा सम्बन्ध कुण्डलिनी शक्ति से होता है।
इसका कार्य भी कर्ण मतंगणि, कर्ण पिशाचिनी की तरह होता है।
यह साधना अघोर पद्धति में,शाबर पद्धति में भी होती है किंतु वेदोक्त विधि सर्वेश्रेष्ठ है।यहाँ वेदोक्त पद्धति का वर्णन किया है।
सबसे पहले यंत्र को भोजपत्र पर अनार की कलम से और गोरोचन की स्याही से बनाकर उसका पंचोपचार पूजन करे।चोकी पर चारो कोनो पर तेल के दिए जलाये।एक देशी घी का बड़ा चिराग अखण्ड मध्य में जलाये।लाल गुलाब के पुष्पो से पूजन करे ,धूपबत्ती जलाये।
(अखण्ड दीपक जलाने के लिए सुबह नहा धोकर भगवान् सूर्य देव को साक्षी मानकर धूप में दिए को जलाये।)
गुरु पूजन,वास्तु पूजन,पवित्रीकरण का साधन करे।
दिशा उत्तर,वस्त्र लाल,आसन लाल,तिलक लाल चन्दन का,माला लाल मूंगा या रुद्राक्ष,जप दाहिनी हाथ की मध्यमा और अंगूठे के अग्र भाग से।
साधना सिद्ध होने पर साधक किसी भी लोक में घट रही घटना को दूरदर्शन की भांति चलचित्र की तरह देख सकता है।
दाहिनी ओर ताम्र जल कलश स्थापित करे।
यह साधना किसी भी पूर्णिमा को शुरू की जा सकती है।
मन्त्र ॐ ऐम ह्रीम पंचकारस्य स्वाहा।
पं मुदित मिश्रा
+919811696036
BAHUT ACHCHHI JANKARI HAI
ReplyDeleteMujhe yeah sadhna sikhne hai. Guru kaha milega is ke liye.
ReplyDeleteमेरे पास है 9815508782पं0गणेश शास्त्री अंथ्वाल
DeleteDhyan bhi hona chahiye
ReplyDeleteValtali ka dhyan nahi hai
ReplyDeleteOur experienced Astrologer in India, Astrologer Pandit Bhairav will help you to win back your love.
ReplyDeleteBest Astrologer in USA