घंटाकर्ण पिशाचिनी साधना

नवरात्रि,दीपावली@महायक्षणी घंटाकर्णी महापिशाचिनी साधना@
यह साधना अत्यंत प्राचीन है।500 साल पूर्व इस विद्या का काफी प्रचलन था किन्तु वर्तमान में यह विद्या समाप्त हो गयी थी ।(अघोर तांत्रिक सिंधिया को यह विद्या सिद्ध थी।जिस शक्ति के बल पर तांत्रिक ने भानगढ़ के किले को श्रापित किया था वह चण्ड अघोर् विद्या कहलाती है।)
यह देवी शक्ति माता के रूप में सिद्ध होती है,इनमे महापिशाचिनी और यक्षि  दोनों की शक्तियां होती है।
जब साधक को यह सिद्ध होती है तो उसको मन्त्र जाप करते करते विशालकाय घण्टो की आवाजे आती है।सिद्धि के समय यदि साधक उन आवाजो को नही सुन पाया अर्थात डर गया तेज आवाज से तो सिद्धि फैल हो जाती है।सिद्ध होने पर देवी माँ साधक को सोने के बाद उसकी आत्मा को ऐसी ऐसी जगह ले जाती है जहाँ साधक के अधूरे कार्य रहते है और उनको पूरा करती है।इच्छित लोइट्री,सट्टा आदि को स्वप्न के माध्यम से देती है।मन्त्र यथा
ॐ घंटाकर्णी महापिशाचीनी यक्षणि सर्वेश्वर्य देहि देहि स्वाहा
बिना गुरु के साधना न करें।
हर साधना का कवच है उसके बिना सिद्धि नहीं होगी...औम्
काले वस्त्र ग्रहण करे।लोभी साधक दूर रहें।
गुरू अशोक
7669101100
पं.मुदित मिश्रा
+919811696036

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